उत्तर प्रदेश के बांदा। तालाबों की अनदेखी और साल-दर साल बारिश में आती कमी से बुंदेलखंड में पानी का संकट गहराता जा रहा है। पहले बुंदेलखंड में बारिश का औसत तकरीबन 1200 मिलीमीटर से अधिक का था, अब यह 850 मिलीमीटर पर आ गया है। इस कारण यहां के तालाब पूरी तरह नहीं भर पाते। अतिक्रमण के चलते तालाबों का अस्तित्व खत्म होने से बारिश का ज्यादातर पानी बहकर नदियों में चला जाता है। इससे भूमिगत जलस्तर लगातार नीचे खिसकता जा रहा है। इस कारण कुएं और हैंडपंप सूख गए हैं। उधर, बांदा जिले के जखनी गांव के बाशिंदों ने तालाबों का महत्व समझा। बारिश का पानी सहेजा तो पानी के संकट से उन्हें निजात मिल गई। पूरे साल गांव में पानी का संकट नहीं रहता।बुंदेलखंड में पहले बारिश का पानी सहेजने की प्रथा थी। गांवों और खेतों में बने बड़े-बड़े तालाबों में बारिश का पानी इकट्ठा कर लिया जाता था। तब बारिश भी पर्याप्त होती थी। तालाब भरने से भूमिगत जलस्तर ऊपर होने से कुओं में भी पर्याप्त पानी रहता था। धीरे-धीरे तालाबों की अनदेखी की जाने लगी। अतिक्रमण से तालाब सिकुड़ते गए और बारिश भी अब कम होती है। यही कारण है कि बुंदेलखंड में साल-दर-साल पीने के पानी का संकट गहराता जा रहा है। भूजल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। नतीजतन नदियां सिकुड़ रही हैं। तालाब सूख रहे हैं। हैंडपंप और ट्यूबवेल जवाब दे रहे हैं। इन्हीं सब कारणों से गर्मी में हाहाकार के हालात बन जाते हैं।