हमारे बच्चो ने या हमने भी जबसे पढ़ाई को शुरू किया तब से हमें यही सिखाया जा रहा है की भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और सामाजिक पुनर्निर्माण में डॉ. भीमराव आंबेडकर का बहुत योगदान रहा है और इसी एक चर्चित नाम को लेकर सब कहानिया बनाते रहे हैं। लेकिन एक सवाल जो अक्सर सामने आता है वह यह है — “जब उनकी जाति के लोग उस समय पढ़े-लिखे नहीं थे, तब उन्होंने अपनी सभी पुस्तकें और विचार अंग्रेज़ी में क्यों लिखे?” क्या यह केवल “शिक्षा का माध्यम” था या इसके पीछे गहरी राजनीतिक रणनीति और औपनिवेशिक सत्ता से सहयोग की चाह छिपी थी?
आगे जाने से पहले हम आपको एक बहुत जरुरी बात बताना चाहते है की भारत में ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिए जो हथकंडे 1793 में William Carey ने आपनाये थे और उनके आगे बढ़ने में जो रूकावट थी उसको भी जान लीजियेगा, इस William Carey ने विशेषकर मनुस्मृति, वेद, उपनिषद को निशाना बनाया और इसी ने शूद्रों को दलित नाम दिया और सभी लोगो से कहा कि “हिंदू धर्म ने तुम्हें अपवित्र कहा, यीशु ने तुम्हें प्रेम किया, जबकि ब्रिटिश काल में सभी लोग अंगेजो के गुलाम नहीं थे, फिर भी जो लोग खेतो में काम करते थे, या बढ़ाई, कहार या लुहार, या पशुपालन का काम करते थे, उनसभी को ये अहसास दिलाया की तुम शूद्र हो मनुस्मृति और वेदो के अनुसार जबकि वो सच नहीं था, और तुम दलित हो क्युकी तुम्हारे साथ ब्राह्मण नहीं बैठता, जबकि उस समय भारतीय जनमानस इतना घ्रणित या हेय दृस्टि से एक दूसरे को नहीं देखता था।
कुछ कुछ ग्रामीण अंचल में कुछ कुछ जाति के लोगो में समाज सुधार के नाम पर सती प्रथा, बाल विवाह, जातिवाद पर बोलना शुरू किया, लेकिन वास्तविक उद्देश्य था हिंदू धर्म को “बर्बर” सिद्ध करना, क्युकी इसने यहाँ आकर संस्कृत सीखी और सत्ता तो मनमाना अर्थ निकाला और एक वर्ग को प्रलोभित किया और अनाज, शिक्षा, दवा आदि के बदले धर्मांतरण करवाया।
1. सामाजिक पृष्ठभूमि और ब्रिटिश प्रश्रय:
अब बात करते है आंबेडकर की इनकी रणनीति की जो William Carey की और उस जैसे कई लोगो की विवेकानंद और दयानन्द जैसे लोगो के कारण अधूरी रह गयी थे, ये महार जाति से आते थे, जो ब्रिटिश सेना में बड़ी संख्या में भर्ती की जाती थी।
ब्रिटिश नीति रही थी — Divide and Rule, यानि भारतीय समाज को बाँटना, खासकर जाति के आधार पर। इस नीति को समर्थन देने के लिए उन्हें ऐसे नेता चाहिए थे जो सवर्ण हिन्दुओं के विरुद्ध ‘न्याय’ और ‘उद्धार’ की बात करें।
👉 आंबेडकर इस उद्देश्य के लिए परफेक्ट चेहरे थे।
- उच्च शिक्षित
- पश्चिमी शिक्षण संस्थानों के संपर्क में
- सवर्ण-विरोधी बयानबाजी के प्रति सक्रिय
- जातिगत पीड़ा को ब्रिटिश मंच पर उठाने के इच्छुक
2. अंग्रेज़ी: माध्यम या मनोवैज्ञानिक रणनीति?
● किताबें किसके लिए लिखी थीं?
उनकी प्रमुख किताबें —
- Annihilation of Caste
- The Riddle of Hinduism
- Who were the Shudras?
- The Untouchables
- Thoughts on Pakistan
- Buddha and His Dhamma
सभी अंग्रेज़ी में लिखी गईं।
📌 इनका लक्षित पाठक वर्ग स्पष्ट था:
- ब्रिटिश अधिकारी वर्ग
- अंतरराष्ट्रीय बुद्धिजीवी समुदाय
- मिशनरी और वामपंथी चिंतक
👉 भारत के ग्रामीण अछूत वर्ग को वे जानबूझकर प्रवक्ता की भूमिका में नहीं लाते, बल्कि अपने आपको उनके ठेकेदार के रूप में प्रस्तुत करते हैं। क्युकी वो अगर ऐसी भाषा में लिखते जिसे देश का नागरिक पढ़ लेता तो शायद विरोध करता भी और यही कारण था इनकी चुनाव में हार का की जनता को कुछ कुछ सच तो पता ही चल गया था
3. रणनीति: ब्राह्मण-विरोध और मिशनरी नैरेटिव का मिलन
Ambedkar ने वेद, मनुस्मृति, रामायण, गीता आदि ग्रंथों पर जो आरोप लगाए, वे Missionary Literature से प्रेरित थे, क्युकी मिशनरीज खुद ऐसा झूठ फैला कर अपने ईसाई धर्म की पकड़ बनाने में लगा हुआ था ।
उदाहरण:
- “मनुस्मृति मनुष्य के अधिकारों का संहार करने वाला ग्रंथ है।”
- “हिंदू धर्म का मूल आधार ही जातिवाद है। यह मनुष्य को जानवर समझता है।”
📌 ये तर्क Missionaries द्वारा पहले ही 18वीं–19वीं सदी में गढ़े गए थे, ताकि वेदों और पुराणों को असभ्य और बर्बर बताकर ईसाई धर्म का प्रचार किया जा सके।
👉 आंबेडकर ने इन्हीं तर्कों को अंग्रेज़ी में दोहराया और वैश्विक मंच पर फैलाया।
4. गोलमेज सम्मेलन (Round Table Conference) और ब्रिटिशों से सीधे संवाद
🎯 1932 का सम्मेलन:
- आंबेडकर ने मांग रखी कि अछूतों को हिन्दुओं से अलग समझा जाए और उन्हें अलग चुनाव अधिकार मिले (Separate Electorate)।
- गांधी जी ने इसका विरोध किया, परिणामस्वरूप Poona Pact हुआ।
📌 यह मांग ब्राह्मण-विरोध से कहीं अधिक थी — यह हिंदू समाज के विखंडन का प्रस्ताव था।
👉 ब्रिटिशों को यह साफ संदेश गया:
“अगर आप हमें सत्ता में भागीदारी देंगे, हम सवर्णों के विरुद्ध आपके साथ रहेंगे।”
5. गांधी, टैगोर, विनोबा भावे, रामस्वरूप और गोयल की असहमति
🔹 महात्मा गांधी:
“आंबेडकर का दृष्टिकोण संकीर्ण और खतरनाक है। वह पूरे धर्म को नष्ट करना चाहते हैं।”
🔹 रवींद्रनाथ टैगोर:
“सुधार की आवश्यकता है, लेकिन धर्म को तोड़ने की नहीं। आंबेडकर की सोच अत्यधिक विषैली है।”
🔹 विनोबा भावे:
“जातियों के विरुद्ध संघर्ष जरूरी है, परंतु धर्म-विनाश का अभियान विनाशकारी होगा।”
🔹 रामस्वरूप:
“Ambedkar एक बौद्धिक क्रांतिकारी नहीं, बल्कि एक औपनिवेशिक एजेंट बन गए।”
🔹 सीताराम गोयल:
“Ambedkar’s works mirrored the language of Christian missionaries and colonial rulers, not the reformers of India.”
6. बौद्ध धर्म अपनाना — विकल्प या औपनिवेशिक सहूलियत?
“I was born as a Hindu, but I will not die as one.” — Ambedkar
👉 उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया, लेकिन गहराई से देखने पर यह बौद्ध धर्म नहीं बल्कि Navayana Buddhism था — जो उन्होंने खुद गढ़ा। यह बौद्ध दर्शन से अधिक हिंदू-विरोध का मंच बन गया।
7. अंग्रेज़ों के लिए संकेत: “हम आपकी तरफ हैं”
Ambedkar की अंग्रेज़ी लेखनी यह जताती थी कि —
- ब्राह्मण-सवर्ण भारत में अंग्रेज़ी सत्ता के सबसे बड़े शत्रु हैं।
- अगर आप दलितों और पिछड़ों को समर्थन देंगे, तो भारत में सवर्ण वर्चस्व को तोड़ा जा सकता है।
👉 इसलिए वे बार-बार “हिंदू धर्म = अत्याचार”, “ब्राह्मण = उत्पीड़क” और “ब्रिटिश = न्यायप्रिय” जैसे नैरेटिव गढ़ते हैं।
Dr. Ambedkar की अंग्रेज़ी किताबें केवल सामाजिक सुधार की अभिव्यक्ति नहीं थीं।
वे थीं —
- ब्रिटिश सत्ता को प्रभावित करने का माध्यम,
- हिंदू धर्म को विश्व मंच पर बदनाम करने का प्रयास,
- और Missionary एजेंडे को वैधता देने का प्रयास।
उनकी भाषा, तर्कशैली और पुस्तकों का संदर्भ यही दर्शाता है कि —
“Ambedkar wanted to project to the British that the Depressed Classes are with you — not with the Hindu mainstream — and that if you support us, we will support your power in India.”
एक व्यक्ति जिसको एक धर्म से इतनी घृणा रही हो क्या वो संविधान में उनके लिए कोई संविधान रखेगा ? ये प्र्शन पूछना चाहिए हर हिन्दू सनातनी भारतीय को खुद से और सरकार से और न्यायलय से भी, और अगर ऐसा संविधान होता तो झूठे sc st लगा आकर देश के एक नागरिक का जीवन बर्बाद करने वाले व्यक्ति के लिए प्रावधान है ?


































