उत्तर प्रदेश जनसंख्या के मामले में देश का सबसे बड़ा राज्य है, और साथ ही जिलों के मामले में भी, उत्तर प्रदेश में जिलों की संख्या सर्वाधिक है जो की 75 है, अब अगर जिले ज्यादा है तो उपजिले जिन्हे हम उपमंडल कह सकते है, तो फिर ब्लॉक और तहसील भी उसी अनुपात में होगी, अब इन सबके बाद भी अगर 173 पदों के लिए विज्ञापन आये और वो भी ये कहकर की लेट आया है क्युकी इसमें SDM और उपाधीक्षक के पदों की जानकारी देर से मिली।
आम तौर पर हर साल आयोजित होने वाली इस परीक्षा में लाखो उम्म्मीदवार बैठते है, जैसे 2022 में छह लाख बैठे थे कुल 383 पदों के लिए, 2021 में भी 483 पदों के लिए लाखो लोगो ने आवेदन किया था, ऐसी ही २०१९ और २०१८ में क्रमशा ४५३ एवं ९८८ पदों का विज्ञापन निकला था।
क्या कार्मिक मंत्रालय इतना कम जानकारी रखता है की जिस राज्य की जनंसख्या इतनी हो वहा पर पदों का अनुपात क्या होना चाहिए ? या तो ये एक षड्यंत्र है राज्य सरकार यानी की योगी सरकार के खिलाफ या फिर योगी बाबा को इन निकम्मे और भ्र्स्त अधिकारिओ की नकेल कसना नहीं आता है।
आयोग का एक निर्णय प्रशंसनीय है जिसमे उन्होंने मुख्या परीक्षा से वैकल्पिक विषयो को हटा दिया है, क्यूकी वर्तमान तकनिकी युग इतने ज्ञान और स्मरण शक्ति की आवश्यकता नहीं है, वल्कि प्रसाशनिक दक्षता की जरूरत है और उसके लिए ही परीक्षा करवानी चाहिए, एक समय था जब इंटरनेट और अन्य सुविधाएं न होने के कारण बहुत सी बाते एक अधिकारी को याद रखने की जरूरत थी, लेकिन आज ये काम बहुत आसान हो गया है।
अब एक मुद्दा है जो गले की फ़ांस बनने की राह पर है और वो है EWS वर्ग के लिए आयु में छूट, जैसा की ज्ञात हो की देश के बहुत से राज्यों ने EWS को आयु में समुचित छूट दी है, जैसे राजस्थान, मध्यप्रदेश और अन्य राज्य भी या तो कर चुके है या करने की तैयारी में है, लेकिन अभी तक उत्तर प्रदेश में ऐसा कुछ भी सुनने को नहीं आया है।
अब प्रश्न ये है की बिना आयु में छूट दिए आरक्षण का मतलब क्या है ? क्या ये महज एक चुनावी लोलोपोप थी या फिर सवर्ण बच्चो को उग्र होने से रोकने का एक सेफ्टी वाल्व जैसा प्रयोग, जो भी इसका निर्णय तो विधायिका और न्याय पालिका को मिलकर ही करना होगा इसमें सबसे जरुरी है युवाओ को उग्र होने से रोकना जिसके युवाओ के पास पर्याप्त कारण है पहला तो 173 पदों पर विज्ञापन वो भी इतने बड़े राज्य में दूसरे इकोनॉमिक वीकर सेक्सन के नाम पर मुर्ख बनाया जाना।