कुछ लोगों को ऐसी भ्रांति है वो ही तर्कवादी है और वो जिनको फॉलो करते है उनके ट्रक अकाट्य है, इसी में एक पेरियार भी है जिनके फोल्लोवेर्स को लगता है की उनके पंद्रह प्रश्न का उत्तर किसी के पास नहीं है, तो आज उनके पंद्रह प्रश्नो के उत्तर दिए देता हूँ, अगला नंबर बाइस प्रतिज्ञा वाला बाबा का है।
प्रश्न – मैंने सब कुछ किया. मैंने गणेश आदि सभी ब्राह्मण देवी-देवताओं की मूर्तियां तोड़ डालीं. राम आदि की तस्वीरें भी जला दीं. मेरे इन कामों के बाद भी मेरी सभाओं में मेरे भाषण सुनने के लिए यदि हजारों की गिनती में लोग इकट्ठा होते हैं तो साफ है कि ‘स्वाभिमान तथा बुद्धि का अनुभव होना जनता में, जागृति का सन्देश है.
उत्तर – अगर मै भी पेरिएर की मुर्तिया तोड़ दू और अम्बेडकर की भी तोड़ दू तो मेरे साथ भी लाखो लोग आ जायेगे तो क्या आंबेडकर और पेरियार को मानने वाले खुद ये बात मानेगे कि ‘स्वाभिमान तथा बुद्धि का अनुभव होना जनता में, जागृति का सन्देश है.
प्रश्न – दुनिया के सभी संगठित धर्मो से मुझे सख्त नफरत है.
उत्तर – क्या पेरियार और अम्बेडकर को मानने वाले आज संगठित नहीं है ? क्या इनके अनुयाई इनको पूजना अपना धर्म नहीं समझते है ?
प्रश्न – शास्त्र, पुराण और उनमें दर्ज देवी-देवताओं में मेरी कोई आस्था नहीं है, क्योंकि वो सारे के सारे दोषी हैं. मैं जनता से उन्हें जलाने तथा नष्ट करने की अपील करता हूं.
उत्तर – क्यों दोषी है ? ऐसे तो संविधान में भी आपातकाल के कारण मौलिक अधिकारों के रोक की बात की गयी है तो क्या संविधान या उसको बनाने वाली तीन सौ लोगो की सभा इसकी दोषी है या फिर जो इसका गलत प्रयोग कर रहा है वो दोषी है
प्रश्न – ‘द्रविड़ कड़गम आंदोलन’ का क्या मतलब है? इसका केवल एक ही निशाना है कि, इस आर्य ब्राह्मणवादी और वर्ण व्यवस्था का अंत कर देना, जिसके कारण समाज ऊंच और नीच जातियों में बांटा गया है. द्रविड़ कड़गम आंदोलन उन सभी शास्त्रों, पुराणों और देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखता, जो वर्ण तथा जाति व्यवस्था को जैसे का तैसा बनाए रखे हैं.
उत्तर – ये मानसिक विक्षिप्तता है, वर्ण व्यवस्था वैसे ही काम करती है जैसे सर्कार के विभाग जिसमे अलग अलग पदों पर अलग अलग जिम्मेदारी के लिए लोगो को बिठाया जाता है, ये सब एक सिस्टम का हिस्सा है लेकिन फिर भी एकदुसरे का सम्मान करना और बात मानना सिस्टम का एक अंग है, और ये तो आप खुद भी मानते हो, आपने खुद ही कितने लोगो को अपने बराबर में बिठाया है ?
प्रश्न – ब्राह्मण हमें अंधविश्वास में निष्ठा रखने के लिए तैयार करता है. वो खुद आरामदायक जीवन जी रहा है. तुम्हे अछूत कहकर निंदा करता है. मैं आपको सावधान करता हूं कि उनका विश्वास मत करो.
उत्तर – अधंविश्वास से पहले ये जान लो की विस्वास क्यों करना है, क्या पेरियार को मानने वाले अंधविश्वासी नहीं है ? क्या उनको ये अंधविस्वास नहीं है की पेरियार उनका सही मार्गदर्शन कर रहे है ? जबकि वास्तव में वो समाज में एक प्रकार का जहर घोल कर सामाजिक व्यवस्थ में द्वेष की भवना भर रहे है।
प्रश्न – ब्राह्मणों ने हमें शास्त्रों ओर पुराणों की सहायता से गुलाम बनाया है. अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए मंदिर, ईश्वर,और देवी-देवताओं की रचना की.
उत्तर – अगर आपको ऐसा लगता है तो आप मत बनिए गुलाम, लेकिन फिर आप पेरियार जैसे लोगो के भी गुलाम मत बनो जो उनके कहने पर ही विरोध करने लगे हो, खुद सोचो की कितना विरोध करना सही है या फिर नहीं करना सही है
प्रश्न – सभी मनुष्य समान रूप से पैदा हुए हैं तो फिर अकेले ब्राह्मण उच्च व अन्य को नीच कैसे ठहराया जा सकता है?
उत्तर – ब्राह्मण एक जाति नहीं वर्ण था, आपकी अलप विकसित बुद्धि ने जाति मान लिया है, आप पूरी तरह से स्वतंत्र है किसी का सम्मान नहीं करने के लिए, जैसे अपमान करने के लिए स्वतंत्र है जो की आप कर भी रहे है
प्रश्न – आप अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई क्यों इन मंदिरों में लुटाते हो. क्या कभी ब्राह्मणों ने इन मंदिरों, तालाबों या अन्य परोपकारी संस्थाओं के लिए एक रुपया भी दान दिया?
उत्तर – क्या आपको मंदिर में दान नहीं करने पर कोई नोटिस आता है या आता था ? जैसे इनकम टैक्स नहीं देने पर आता है ? इनकम टेक्स भी तो आपकी गाढ़ी कमाई पर ही लूट है उसपर फॉक्स करो
प्रश्न – हमारे देश को आजादी तभी मिली समझनी चाहिए, जब ग्रामीण लोग, देवता ,अधर्म, जाति और अंधविश्वास से छुटकारा पा जाएंगे.
उत्तर – इन सबसे से आप स्वतंत्र ही है मानो या मत मानो, लेकिन सवाल ये है की पेरियार या अम्बेडकर को मानने वाले इतने अश्भ्य और अशिस्त क्यों होते है ? क्या ये कोई अंधविस्वास नहीं है की अगर इनको मानना है तो दुसरो को अपशब्द बोलन ही पड़ेगा ?
प्रश्न – आज विदेशी लोग दूसरे ग्रहों पर संदेश और अंतरिक्ष यान भेज रहे हैं. हम ब्राह्मणों द्वारा श्राद्धों में परलोक में बसे अपने पूर्वजों को चावल और खीर भेज रहे हैं. क्या ये बुद्धिमानी है?
उत्तर – इसका उत्तर तो पेरियार और आंबेडकर को पूजने वाले अच्छे से दे सकते है की उनकी मुर्तिओ और फोटो को फूल और मालाये क्यों चढ़ा रहे हो ? क्या इसकी खुशबू उन तक जा रही है ?
प्रश्न – ईश्वर की सत्ता स्वीकारने में किसी बुद्धिमत्ता की आवश्यकता नहीं पड़ती, लेकिन नास्तिकता के लिए बड़े साहस और दृढ विश्वास की जरुरत पड़ती है. ये स्थिति उन्हीं के लिए संभव है जिनके पास तर्क तथा बुद्धि की शक्ति हो.
उत्तर – ये तो बहुत सरल काम है, आप ईश्वर को मत मानो तो क्या कोई आपको समाज से या देश से बहार कर देगा, लेकिन अगर एक जाति विशेष में पैदा होकर भी आप पेरियार और अंबडेकर को नहीं मानेगे तो आपको अनगिनत गालिया पड़ेगी, विस्वास न हो तो ट्राय कर लो
प्रश्न – ब्राह्मणों के पैरों पर क्यों गिरना? क्या ये मंदिर हैं? क्या ये त्यौहार हैं? नही , ये सब कुछ भी नही हैं. हमें बुद्धिमान व्यक्ति कि तरह व्यवहार करना चाहिए यही प्रार्थना का सार है.|
उत्तर – ये तो आपकी स्वतंत्रता है की आप किसके पैर पड़ेगे और किसके नहीं, पेरियार और अंबडेकर के अनुयाई भी तो आपसे में किसी ने किसी के पैर पड़ते होंगे और नहीं पड़ते होंगे तो दोनों ही स्वतंत्रता है, जैसे अपमान करना आपकी आपकी स्वतंत्रता है वैसे ही सम्मान करना भी किसी की स्वतंत्रता हो सकती है
प्रश्न – ब्राह्मण देवी-देवताओं को देखो, एक देवता तो हाथ में भाला/ त्रिशूल उठाकर खड़ा है. दूसरा धनुष बाण. अन्य दूसरे देवी-देवता कोई गुर्ज, खंजर और ढाल के साथ सुशोभित हैं, यह सब क्यों है? एक देवता तो हमेशा अपनी ऊँगली के ऊपर चारों तरफ चक्कर चलाता रहता है, यह किसको मारने के लिए है?
उत्तर – आपको बांसुरी वाले भगवान भी देखने चाहिए, भगवान ये अस्त्र शस्त्र किस लिए लिए है ये तो बताया ही है भगवद गीता में, पढ़ सकते हो।
प्रश्न – हम आजकल के समय में रह रहे हैं. क्या ये वर्तमान समय इन देवी-देवताओं के लिए सही नहीं है? क्या वे अपने आप को आधुनिक हथियारों से लैस करने और धनुषवान के स्थान पर , मशीन या बंदूक धारण क्यों नहीं करते? रथ को छोड़कर क्या श्रीकृष्ण टैंक पर सवार नहीं हो सकते? मैं पूछता हूँ कि जनता इस परमाणु युग में इन देवी-देवताओं के ऊपर विश्वास करते हुए क्यों नहीं शर्माती?
उत्तर – ये शर्म तो आपको और आपके अनुयायिओं को भी आणि चाइये जो वैज्ञानिक युग में झूठी शोषण की कहानी सुना सुना कर जनता को मुर्ख बना रहे हो, बजाये उनको कर्म आधार पर आगे बढ़ने लिए प्रेरित करने के आप द्वेष और घृणा का पथ दिखा रहे हो
प्रश्न – उन देवताओ को नष्ट कर दो जो तुम्हें शुद्र कहे, उन पुराणों और इतिहास को ध्वस्त कर दो, जो देवता को शक्ति प्रदान करते हैं. उस देवता की पूजा करो जो वास्तव में दयालु भला और बौद्धगम्य है.|
उत्तर – तो सबसे पहले अपने जातिप्रमाण पत्रों को नष्ट करो, जाति के आधार पर मिलने वाले आरक्षण और अन्य सुविधाओं का वहिशकर करो, और संविधान का भी करो जो आपको अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का बता कर सामान्य वर्ग में नहीं आने देता है